Saturday, October 15, 2011

अमलतास

कुछ रास्तों पर चलते हुए किनारे पर लगे हुए पेड़ अपने से लगते हैं , और अगर रास्ते जाने पहचाने हों तो इन रास्तों के साथ-साथ पेड़ों से भी अपनापन कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है . ये पेड़ रास्ते पर चलने वालों के साथ चलते हैं, आप अकेले चल रहे हों तो आपके साथी भी बनते हैं , आपके मौन की आवाज़ भी सुनते हैं , ना जाने कितना कुछ कहते हैं और जब कहतें हैं तो बस कहते ही जाते हैं ....या कह सकते हैं की मन की आवाज बनकर सामने आते हैं ....मौसम का असर दिखातें हैं ....कल तक जो पेड़ किनारों पर खड़े हुए थे आज भी वहीँ हैं लेकिन आज उनको देखने का वो नजरिया नहीं है; क्यूंकि मौसम के असर से सब कुछ बदल गया है ....कल तक जिनको देख कर बुरा लगता था...एक चिढ सी मचती थी ,,की क्या जरूरत है इनकी ??क्यूंकि ना तो ये छावं ही दे रहे हैं और ना तपती गर्मी से शांति ....बस खड़े होकर चिढ़ा रहे हैं कि और करो प्रकृति के साथ खिलवाड़ प्रकृति अपने उग्रतम रूप में बदला लेगी सारी मानव जाति से....उनको देखकर ये भी लगता था की क्यूँ बेकार ही बेचारे एक खजूर के पेड़ को ही सम्पूर्ण साहित्यिक आलोचना का केंद्र बनाया गया है......क्या कैम्पस की रोड के किनारे खड़े ये अमलतास के पेड़ खजूर के प्रतियोगी नहीं हैं ....क्यूंकि अगर खजूर के लिए कह सकते हैं की "बड़ा भया तो क्या भया जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नहीं , फल लागत अति दूर "....तो ये अमलतास भी कहीं पीछे नहीं हैं.....ना तो इनमे छाया है और ना ही फल, फिर क्यूँ नही किसी साहित्यकार ने इन्हें अपनी आलोचना का शिकार बनाया ???? क्या सिर्फ इसलिए कि फल और छाया ना होते हुए भी इनमे फूल तो है ही ...और अगर फूल हैं- तो सौन्दर्य है, सौन्दर्य है तो शांति है ,सभी क्लेशों से मुक्ति है, जीवन को देखने का नया नजरिया है , नयी जीवनी शक्ति है........"सुन्दरता का सुन्दर करैं "(तुलसीदास जी की "मानस" की पंक्तियाँ जिसमे उन्होंने सीता की सुदरता का वर्णन किया है ) का विश्वास है और जब इन फूलों से लदे ये पेड़ खड़े होते हैं तो बस इनके साथ चलने वालों के मन में यही ख्याल आता है की जैसे कोई योगी अपनी पूरी शांति के साथ खुद सम्पूर्ण संसार को शांति और सौंदर्य का सन्देश दे रहा हो ...... बता रहा हो कि विश्व कभी युद्ध में खुश रह ही नहीं सकता ......अगर विश्व को खुश रहते हुए विकास करना है तो अंततः उसे शांति और सौंदर्य कि शरण लेनी ही होगी .....आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं वो सब इस बात को प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित करते हैं........खैर ये तो विषयांतर है और ये युद्ध और शांति तो राजनीति और राजनीतिज्ञों कि बाते हैं ....उनके अपने निहित स्वार्थ हैं जिनकी कीमत सम्पूर्ण जनता को चुकानी होती है .....हाँ तो बात हो रही थी.........'अमलतास' की .....जब मौसम ने भी कुछ कृपा की हुई है इस समय इन पेड़ों पर लगे हुए फूल, चहकती हुई चिड़ियाँ , बारिश की हलकी फुहारों में उडती हुई फूलों की पत्तियां , बादलों से निकलता हुआ चाँद , सड़कों पर बिछी हुई पीले रंग की पत्तियां इस सब को देखकर ऐसा लगता है कि .........जैसे ये सारी चीजें कुछ कह रही हों......अपने सूक्ष्म रूप में सामने आकर जीवन को अपनी संपूर्ण जीवनी शक्ति से जीने का नया सन्देश दे रही हो , भौतिकता पर प्रकृति की विजय कि घोषणा कर रही हो ,प्रसन्नता का संचार कर रही हो .....आदि-आदि .

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